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मेट्रो सिटी बनने को ओर
तेजी कदम बढ़ा रहा कानपुर महानगर कई रहस्यों को समेटे हुए है। यहां आज भी भूत-प्रेत,
डायन, चुड़ैल, आत्मा, खजाना जैसी चर्चाओं के बाजार हमेशा गर्म रहते हैं। हम आपको बताते
हैं कानपुर के ऐसे ही 3 अनसुलझे रहस्य और जगहों के बारे में जिन्हें जानकार आप भी दांतों
तले उंगलियां दबा लेंगे...
1. सिविल लाइंस ग्रेव
यार्ड
कानपुर के पौश इलाके सिविल
लाइंस में बने ग्रेव यार्ड को आत्माओं का बसेरा कहा गया है। लोगों का तो यहां तक कहना
है कि रात में यहां से गुजरने वाले हर शख्स को भूत दिखता है। इसी वजह से यहां अक्सर
दुर्घटनाएं होती हैं। सिविल लाइंस में रहने वाले लोगों का कहना है कि उन्होंने एक अंग्रेज
की आत्मा को देर रात 2 बजे सड़क पर घूमते हुए देखा है। अंग्रेज सफेद रंग की पोशाक पहने
हुए रहता है टोकने पर वह गायब हो जाता है।
2. खेरेश्वरधाम मन्दिर में
अश्वत्थामा की आत्मा
खेरेश्वरधाम मन्दिर कानपुर
से 40 किलोमीटर दूर शिवराजपुर में गंगा नदी से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित है। महाभारत
काल से सम्बन्धित इस मन्दिर के शिवलिंग पर केवल गंगा जल ही चढ़ता है। मान्यता है कि
मन्दिर को गुरु द्रोणाचार्य जी द्वारा बनवाया गया था और यहीं उनके पुत्र अश्वत्थामा
का जन्म भी हुआ था। कहते हैं कि मन्दिर में रोजाना रात्रि में 12 से 1 बजे के बीच द्रोणाचार्य
के पुत्र अश्वत्थामा पूजा करने के लिए आते हैं। मन्दिर के पुजारी गोस्वामी के अनुसार
रात्रि में मन्दिर बंद होने के बाद जब सुबह 4 बजे मन्दिर के पट खुलते हैं तो यहां स्थित
मुख्य शिवलिंग पर जो सफेद फूल रखे जाते हैं, उनमें से एक फूल का रंग बदल कर लाल हो
जाता है।
3. दबा खजाना
कानपुर ऐतिहासिक नगरी
है। यहां खजाना दबे होने की बात तो आम है। बिठूर में नाना साहब के महल में एक कुआं
था। जब ब्रिटिश हुकूमत ने बिठूर पर कब्जा किया तो किले से करीब 30 लाख रुपए कैश और
70 लाख रुपए की ज्वैलरी मिली थी। लोगों का दावा है कि असली खजाना तो अभी भी किले में
ही दबा हुआ है। हाल ही में नानामऊ गांव निवासी तिलक सिंह अपने घर के सामने कमरा बनवाने
के लिए नींव खोद रहे थे, तभी कुछ सिक्के निकल आए। प्रधान ने बताया कि सिक्कों पर फारसी
में कुछ लिखा है। सराफ ने जांच करके तांबे की धातु के सिक्के बताया। जानकारों ने बताया
कि सिक्के सन 1270 के हैं और गुलाम वंश का शासन दिखाया गया है। देखते ही देखते मौके
पर बड़ी संख्या में ग्रामीण एकत्रित हो गए। कई सिक्के ग्रामीण लेकर अपने घर चले गए।